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दीवाली पर सब घर दीप जलेंगे , हमारे घर आसुओ की बारिश होगी … मां ने मंगलसूत्र बेचकर इलाज कराया, पर नहीं बचा बेटा


देश में दिवाली की खुशियां हैं। लेकिन एक इलाका ऐसा भी है, जहां परिवारों में मातम पसरा हुआ है। कफ सिरफ कांड का शिकार बने इन परिवारों का हाल जानने हिन्द प्रदेश जिले, इनकी तहसील, इनके गांव पहुंचा है… पढ़िए ये रिपोर्ट

छिंदवाड़ा, चौरई (आमाझिरी): पूरा देश जब दिवाली मना रहा है और लोगों के घरों में दीप जल रहे हैं तो हम आंसुओं की बारिश की डूबे हुए हैं… मातम पसरा है। ये उस मां के शब्द हैं, जिसने कुछ दिनों पहले अपना 8 साल का इकलौता बेटा (सत्या पवार) खो दिया। कफ सिरप ने जिन बच्चों की जिंदगी छीनी, उन 24 में सत्या भी एक हैं। दिवाली से ठीक पहले ‘हिन्द प्रदेश’ ने सत्या के परिवार से बात की और अब यह दंग करने की वाली दास्तां आपके सामने है।

दुखों का पहाड़ गरीब-बेबस परिवार पर ही क्यों टूटा?
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से करीब 50 किलोमीटर दूर चौरई तहसील में बसा छोटा-सा गांव आमाझिरी है। कच्ची दीवारों वाले घर के बाहर कोई नहीं था। आवाज लगाने पर सत्या की दादी बाहर आईं। उन्होंने बरामदे के पास (बैठक) बैठाया। अंदर जाने वाले दरवाजे के बगल में सत्या की माला चढ़ी तस्वीर टंगी है। नीचे रखी है एक पुरानी खाट। प्लास्टिक की दो कुर्सियां। घर की छत के निचले भाग को प्लास्टिक (पन्नी) से कवर किया गया है। ये सब देखने पर मन सोचने लगता है… हे ईश्वर। दुखों का ये पहाड़ इस गरीब-बेबस परिवार पर ही क्यों टूटा?

मैं (हिन्द प्रदेश का रिपोर्टर) दादी से बात करने लगता हूं। उनके दिल में गुस्से का गुबार है। पोते को छीन लिया। वह साफ शब्दों में कहते गईं- गलत दवाई-गोली देने वालों की ऐसी गत होनी चाहिए कि पुश्तें याद रखें। त्योहार आ रहा है। कहता था पापा-चाचू मेरे लिए ये पटाखा लाना, वो पटाखे लाना। किसके लिए लाएंगे हम अब पटाखे। हमारी छाती फटी जा रही है। बारह महीने का त्योहार आ रहा है।

जब हम सत्या की छोटी बहन से बात करने की कोशिश करते हैं तो वह रोते हुए भाग जाती है।

उस समय बच्चे के पिता को पुलिस ने बयान देने के लिए बुलाया था। मां से बात करने की बड़ी कोशिश करने पर वह सामने आईं। वह टूटकर बिखरी हुई हैं। वह कहती हैं- मेरा जी घबराता है भैया। सत्या की तस्वीर आंखों के सामने आने लगती है। मुझे रोना आता है भैया…! इतना कहते ही वह बात करने से मना कर देती हैं। पीछे बैठी बच्चे की दादी कहती हैं- रो-रोकर बुरा हाल हो गया है इसका बेटा। ये घबराने लगती है…। पिता को घर आने में समय लग रहा था। ढांढस बंधाता हूं। मां खुद को संभालते हुए आखिरकार बात करने के लिए तैयार हो जाती हैं।

मां ने नाक की नथ, करधनी तक बेच दी, पर बच्चा नहीं बचा
मम्मी आप मजदूरी क्यों करती हो? पापा खेत में इतनी मेहनत क्यों करते हैं? जब मैं बड़ा हो जाऊंगा न तो आप दोनों को काम नहीं करने दूंगा। पढ़-लिखकर खूब पैसे कमाऊंगा। बड़ा आदमी बनूंगा। इतना बड़ा कि आप लोगों को फिर काम नहीं करना पड़ेगा। सत्या की मम्मी जब बेटे के कहे इन बातों को याद करती हैं तो आंखें भर आती हैं। उनके बयां करने का अंदाज बता रहा है कि अपने बेटे के इन सपनों को वो रोज जी रही थीं। बेटे के शब्द मजदूरी से होने वाली थकान पर मरहम का काम करते थे। लेकिन उन्हें पता है ये सपने अब कभी पूरे नहीं होंगे…।

पहले चौरई, फिर छिंदवाड़ा और अंत में नागपुर। जिस परिवार के लिए बारिश का बोझ प्लास्टिक की पन्नियां संभाल रही हैं, उसने इलाज के पैसों का इंतजाम कैसे किया होगा? मैं सोच में पड़ जाता हूं। पूछता हूं। सत्या की मां बताती हैं। हम मजदूर हैं भैया। कभी नहीं सोचा था कि इलाज इतना लंबा चलेगा। लेकिन बीमारी और इलाज दोनों बढ़ते चले गए। मेरे गले में मंगलसूत्र था, नाक में सोने की नथ थी। करधनी थी। सब बेच दिया। बेटे से बढ़कर थोड़ी था? उतने में भी बात नहीं बनी तो रिश्तेदारों से पैसे मांगे। उन्होंने भी निराश नहीं किया। कहने लगे इकलौता बेटा है कैसे भी बस ठीक हो जाए। लेकिन नथ, मंगलसूत्र, करधनी, उधारी… कुछ भी काम न आया। बेटा चला गया।

अस्पताल में गुजरी बेटे की पीड़ा को याद करते हुए सत्या की मां बताती हैं। मम्मी पानी पीना है। पापा पानी पीना है। मेरा बेटा बार-बार पानी मांग रहा था। लेकिन डॉक्टरों ने उसे पानी देने से मना किया था। वो कहता था मुझे यहां डर लगता है, मुझे घर ले चलो। मैं यहां नहीं रहूंगा। लेकिन हम उसे घर नहीं ला पाए, उसने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया।

बड़ी बहन डाउन सिंड्रोम से पीड़ित, पूछती है- भैया कहां है
सत्या की दो बड़ी बहनें पास ही बैठी हैं। एक बहन डाउन सिड्रोम (मानसिक बीमारी) से पीड़िता है। मैं मंझली (सत्या से बड़ी) बहन से बात करने की कोशिश करता हूं। वो इनकार कर देती है। भाई की याद ने इस छोटी बच्ची के जहन से भी नहीं निकल पा रही है। चेहरा देखने में ऐसा लग रहा है, जैसे रो-रोकर सूज गया है। मां समझाती हैं, बेटा बता दो भैया के बारे में। वो मां से लिपटकर रोने लगती है। नन्हें मन पर मैं जोर नहीं डालता।

सत्या की बड़ी बहन डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। मां बताती है- मंझली बेटी तो सब समझती है। लेकिन बड़ी बेटी भाई के बारे में बार-बार पूछती है… मम्मी भैया कहां गया। मैं समझ नहीं पाती इसे क्या बताऊं? सत्या और उसकी मंझली बहन स्कूल एक साथ जाते थे। इसलिए जब बेटी स्कूल जाती या वहां से आती है तो बोलती है- भैया की याद आ रही है। सत्या के स्कूल में भी दुख का माहौल है। कुछ टीचर तो उसकी मौत की खबर सुनने के बाद रोने लगे थे। घर आए थे। अब भी उसे याद करके टीचर रोने लगते हैं।

बीमारी से इलाज तक के मंजर को याद करते हुए सत्या की मां बताती हैं- बेटे को बुखार आया। पति उसे लेकर अस्पताल भागे। डॉ. ने गोली और दो सिरप दीं। रात में तो आराम मिल गया, लेकिन दूसरे दिन फिर तेज बुखार आ गया। अगले दिन हम उसे दूसरे डॉक्टर के पास ले गए, उसने भी गोली और सिरप लिख दिया। हमने कहा नहीं डॉ. साहब इसका ब्लड टेस्ट कर लीजिए, पिछले तीन दिन से इसका शरीर बुखार से तप रहा है। लेकिन डॉ. ने यह कहकर टाल दिया कि ब्लड टेस्ट की जरूरत नहीं है।

अस्पताल में बच्चे का मुंह दबाया गया- मारपीट की
मां आगे बताती हैं छोटे डॉक्टरों से जब आराम नहीं मिला तो हम उसे लेकर चौरई के बड़े अस्पताल के डॉ. तनवीर नुसरत के पास पहुंचे। वहां सबसे पहले बच्चे का ब्लड टेस्ट कराया। डॉ ने कहा- बच्चे की सीआरपी बढ़ी हुई है। हम लोग समझे नहीं कि ये होता क्या है। डॉ. नुसरत ने कहा कि 3 दिन तक देख लो आराम लग जाएगा। जब आराम नहीं लगा तो हम बच्चे को लेकर छिंदवाड़ा पहुंचे। वहां डॉ राठी को दिखाया। उन्होंने सब टेस्ट किए। हम एक रात जनरल वार्ड में रहे। दूसरे दिन आईसीयू में शिफ्ट कर दिया। एक दिन अपने यहां रखने के बाद डॉ. ने उसे नागपुर रेफर कर दिया।

हम मेडिकल कॉलेज पहुंचे, लेकिन बच्चे को यह कहकर भर्ती करने से मना कर दिया कि अभी बेड खाली नहीं है। प्राइवेट अस्पताल की तरफ भागे। वहां बच्चे भर्ती किया। वहां बेटे को अंदर ले गए। हमें उससे मिलने नहीं दिया जा रहा था। बाद में उसने अपने पापा को बताया कि ये मेरे हाथ-पैर बांधकर रख रहे हैं। मेरा मुंह दबा रहे हैं और मार-पीट कर रहे हैं। हमसे ये सब देखा नहीं गया। बेटा चिल्ला रहा था, मम्मी पापा मुझे पानी पीना है और डॉ. हमें उससे मिलने तक नहीं दे रहे थे। इस दुख का अंत कब होगा?